मत्ती 5:47-48 ( Matthew 5:47-48 ) का क्या अर्थ है? Bible verses, Bible study material, Bible verses meaning



47: और यदि तुम केवल अपने भाइयों को ही नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते? 48: इसलिए चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।

इसका मतलब यीशुने बताए हैं की :

व्यक्ति को केवल अपने समूह के सदस्यों के प्रति ही नहीं, बल्कि समस्त मानवता के प्रति प्रेम और समर्थता का ध्यान रखना चाहिए। इस वाक्य में सिद्ध होता है कि समूह के बाहर के लोगों के प्रति भी सहानुभूति और समर्थ का विस्तार किया जाना चाहिए। यह एक समाज के नैतिक मूल्यों को समझाता है जो समृद्ध और स्थिर समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

समाज में सहयोग और सामंजस्य का आदान-प्रदान अगर केवल अपने समूह के सदस्यों के साथ ही किया जाये तो वह समाज में एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व के लिए पर्याप्त नहीं होगा। इसके बजाय, सभी मानवों के प्रति सहानुभूति, समर्थता और प्रेम का विस्तार करना चाहिए। यह समाज के विकास और समृद्धि के लिए आवश्यक है।

वास्तव में, हमारे आसपास के समाज में विभिन्न जातियों, धर्मों, और संस्कृतियों के लोग एक साथ रहते हैं। अगर हम केवल अपने समूह के सदस्यों के साथ ही संवाद करते हैं और उन्हें समर्थ करते हैं, तो हम समाज के बाकी हिस्से को उद्धृत नहीं करते हैं।

इसके विपरीत, हमें विभिन्न जातियों, समुदायों और धर्मों के लोगों के साथ मिलजुलकर काम करना चाहिए। इससे हम समूचे समाज के लिए एक उत्तम संबंध बना सकते हैं और विभिन्न समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।

इस वाक्य में उद्धरण दिए गए "स्वर्गीय पिता" से यह भी समझाया जाता है कि हमें पूर्णता की ओर प्रेरित किया जाता है। स्वर्गीय पिता के समान होना यहाँ उस आदमी को संदेश देता है कि वह अपने कार्यों में परिपूर्णता की ओर अग्रसर हो। यह विचार स्वार्थ छोड़कर और समस्त मानवता के हित में काम करने की प्रेरणा देता है।

इस वाक्य में सच्चाई और धर्म का महत्व प्रमाणित होता है। हमें अपने काम में न्याय, सच्चाई और धर्म का पालन करना चाहिए। इससे हम समृद्ध और स्थिर समाज की नींव रख सकते हैं।

 यीशु अपने शिष्यों को बता रहे हैं कि केवल अपने मित्रों और परिवार को नमस्कार करना कोई बड़ी बात नहीं है. यहाँ तक कि गैर-यहूदी भी ऐसा करते हैं. यीशु उनसे अपने शत्रुओं से भी प्रेम करने का आग्रह कर रहे हैं.

 यीशु अपने शिष्यों को अपने स्वर्गीय पिता की तरह सिद्ध बनने के लिए कह रहे हैं. इसका मतलब है कि उन्हें सभी के प्रति दयालु और दयालु होना चाहिए, भले ही वे उनसे कैसा भी व्यवहार करें.

यहाँ मत्ती 5:47-48 के कुछ प्रमुख बिंदु दिए गए हैं:

* यीशु हमें अपने शत्रुओं से भी प्रेम करने के लिए कह रहे हैं.

* हमें अपने स्वर्गीय पिता की तरह सिद्ध बनने का प्रयास करना चाहिए.

* इसका मतलब है कि सभी के प्रति दयालु और दयालु होना, भले ही वे हमसे कैसा भी व्यवहार करें.

* किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचें जिसे आप पसंद नहीं करते हैं. उनके लिए कुछ अच्छा करने का एक तरीका खोजें.

* जब कोई आपके साथ अच्छा व्यवहार न करे तो दयालु होने की कोशिश करें.

* याद रखें कि हर कोई गलती करता है. दूसरों को क्षमा करने की कोशिश करें

, भले ही उन्होंने आपको चोट पहुँचाई हो.

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Matthew 5:47 

47 And if you greet only your brothers, what more are you doing than others? Do not even the Gentiles do the same, hindi bible verses, hindi bible study, hindi bible message, hindi bible, hindi bible online, online hindi bible, hindi bible story, pavitra bible hind, matthew 5:47 ka kya arth ahe, What does Matthew 5:47 mean?

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